बाखली का सरोकार पहाड़ से है जहा बसते है पहाडी। पहाड़ में बसने का ही जरिया है बाखली। बाखली जहा रहते है लोग जहा बसता है ग्राम समाज। बहुत से लोग जो बाखली से परिचित नही होंगे उनके लिए तो यह महज एक शब्द है लेकिन जो बाखली में रहते है उनके लिए यह एक छोटा सा देश होता है, अपनी सरकार, अपना शासन, काका-काकी, दादा-भौजी, इजा-बोजू और भी गाँवके कई रिश्ते नाते जिनसे कसकर बंधी होती है बाखली। बाखली का मतलब सिर्फ़ घर या पड़ोस नही होता, बाखली पहाड़ मे ग्राम समाज कि सबसे छोटी इकाई होती है, यहाँ पंचायतो कि तरह चुनाव तो नही होते लेकिन यहाँ एक घोषित अनुशासन जरुर होता है।
सच कहे तो बाखली और कुछ नही बस पहाड़ के ढलवा छतो वाले मकानों का एक सिलसिला होती है। दूर से देखने पर बाखली किसी सौकार का घर मालूम होती है, लेकिन असल में घरो के इस सिलसिले मे बिरादरों के कई परिवार रहते है। एक घर से मिलाकर दूसरा घर इस तरह से बनाया जाता है कि तीन दिवार लगाई और दूसरा घर तैयार, आम तौर पर बाखली तब बसती ही चली जाती है जब एक भाई से दूसरा भाई और पिता से बेटे अलग घर बसाते है।
बाखली भले ही एक भाई के दुसरे से या बेटो के पिता से अलग होने पर फलती फूलती हो लेकिन इससे इसका महत्व कम नही होता, क्योकि बाखली मे रहने वाले नाती नातिन तो आमा बुबू कि गोद मे ही खेलते है, इस आगन से उस आगन खेलते खेलते बच्चे कब जवान हो जाते है किसी हो पता भी नही चलता, जाडो के दिनों मे आगन मे बंधे जानवर पुवाल बिछाकर बैठे आमा बुबू ये सिर्फ़ बाखली मे ही होता है, कही आगन के किनारे पर बहु नाती को नहला रही है, तो कही बर्तन माजने कि आवाज। बाखली कि जिंदगी कुछ एसी है कि एक घर में छाछ बनी तो सबके गले से रोटी उतर जायेगी। इसी तरह से नौले धारे का ठंडा पानी एक घर में आया तो सबको मिलेगा। अगर एक घर कि गाय दूध देना बंद कर दे तो कई घरो से दूध आना सुरु हो जाता है और यह सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक गाय न ब्याह जाए। इसी तरह सुख दुःख बाटते हुए चलती है बाखली एसा नही है कि बाखली में लडाई कभी नही होती खेत कि मेड, गाय कि गौसाला , सब्जी का खेत किसी भी सवाल पर रंडी पात्तर हो सकती है।
लेकिन इन सब के बाबजूद बाखली तो बाखली ही है, जो गाँव मे रहा हो वही इसे समझ सकता है। लेकिन अब इस तरह से बाखली का बसना और आबाद होना गुजरे ज़माने कि बात हो गई है। अब तो पैसो से तय होता है कों कहा रहेगा, अगर किसी के पास थोड़ा ज्यादा पैसा है तो वह खेत मे और बेहतर पक्का मकान बना लेता है, और ज्यादा है तो शहर मे, अब बाखली सिर्फ़ उनके लिए है जो किसी कारण पैसा नही जोड़ पाए। लेकिन प्यार कभी ख़तम नही होता ना आज भी बाखली मे रहने वाले लोग उसी तरह से रहते है।
सच कहे तो बाखली और कुछ नही बस पहाड़ के ढलवा छतो वाले मकानों का एक सिलसिला होती है। दूर से देखने पर बाखली किसी सौकार का घर मालूम होती है, लेकिन असल में घरो के इस सिलसिले मे बिरादरों के कई परिवार रहते है। एक घर से मिलाकर दूसरा घर इस तरह से बनाया जाता है कि तीन दिवार लगाई और दूसरा घर तैयार, आम तौर पर बाखली तब बसती ही चली जाती है जब एक भाई से दूसरा भाई और पिता से बेटे अलग घर बसाते है।
बाखली भले ही एक भाई के दुसरे से या बेटो के पिता से अलग होने पर फलती फूलती हो लेकिन इससे इसका महत्व कम नही होता, क्योकि बाखली मे रहने वाले नाती नातिन तो आमा बुबू कि गोद मे ही खेलते है, इस आगन से उस आगन खेलते खेलते बच्चे कब जवान हो जाते है किसी हो पता भी नही चलता, जाडो के दिनों मे आगन मे बंधे जानवर पुवाल बिछाकर बैठे आमा बुबू ये सिर्फ़ बाखली मे ही होता है, कही आगन के किनारे पर बहु नाती को नहला रही है, तो कही बर्तन माजने कि आवाज। बाखली कि जिंदगी कुछ एसी है कि एक घर में छाछ बनी तो सबके गले से रोटी उतर जायेगी। इसी तरह से नौले धारे का ठंडा पानी एक घर में आया तो सबको मिलेगा। अगर एक घर कि गाय दूध देना बंद कर दे तो कई घरो से दूध आना सुरु हो जाता है और यह सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक गाय न ब्याह जाए। इसी तरह सुख दुःख बाटते हुए चलती है बाखली एसा नही है कि बाखली में लडाई कभी नही होती खेत कि मेड, गाय कि गौसाला , सब्जी का खेत किसी भी सवाल पर रंडी पात्तर हो सकती है।
लेकिन इन सब के बाबजूद बाखली तो बाखली ही है, जो गाँव मे रहा हो वही इसे समझ सकता है। लेकिन अब इस तरह से बाखली का बसना और आबाद होना गुजरे ज़माने कि बात हो गई है। अब तो पैसो से तय होता है कों कहा रहेगा, अगर किसी के पास थोड़ा ज्यादा पैसा है तो वह खेत मे और बेहतर पक्का मकान बना लेता है, और ज्यादा है तो शहर मे, अब बाखली सिर्फ़ उनके लिए है जो किसी कारण पैसा नही जोड़ पाए। लेकिन प्यार कभी ख़तम नही होता ना आज भी बाखली मे रहने वाले लोग उसी तरह से रहते है।